Monday, April 27, 2020

पाठ 11, पेज 49, “कृषक गान” (कवि : दिनेश भारद्वाज)

हिंदी लोकभारतीदसवीं कक्षा 
पाठ 11, पेज 49,
“कृषक गान”             (कवि : दिनेश भारद्वाज) 

(1) हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास, उस पर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका, आज उसपर मान कर लूँ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ -> कवि ने कृषक के महत्व को बताते हुए कहा है कि वह अभावों में जीता है लेकिन उसके पास संतोष रुपी धन है। पूरे संसार में कैसा भी वसंत आए लेकिन कृषक के जीवन में सदैव पतझड़ ही बना रहता है। ऐसी अभावों से भरी परिस्थितियों मे भी उसे किसी से माँगना अच्छा नहीं लगता। कृषक को अपनी दीन-हीन दशा पर भी नाज है। मैं ऐसे व्यक्ति पर अभिमान करना चाहता हूँ और उस कृषक का गुणगान करना चाहता हूँ।

(2) चूसकर श्रम रक्त जिसका, जगत में मधुरसबनाया,
एक-सी जिसको बनाई, सृजक ने भी धूप-छाया,
मनुजता के ध्वज तले, आह्वान उसका आज कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।

अर्थ -> कृषक दिन- रात खेतों में काम करता है। अपने रक्त को पसीने के रुप में बहाकर संपूर्ण जगत को जीवन-रस प्रदान करता है। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में उसके लिए धूप-छांव दोनों एक-सी ही हैं। मैं मानवता के नाते उसका आह्वान करना चाहता हूँ 
और उस कृषक का गुणगान करना चाहता हूँ। 

(3) विश्व का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है,
किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है,
आज उससे कर मिला, नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।

अर्थ -> हमारा कृषक अन्नदाता है। वह पालक बन कर 
पूरे विश्व को जीवन देता है। किंतु अफ़सोस है कि जिन लोगों को वह पालता है, उन्हीं के द्वारा पददलित हो कर वह आत्महत्या करने पर मजबूर है। कवि कहते हैं कि, मैं कृषक के हाथ से हाथ मिलाकर एक नई दुनिया का निर्माण करूँ,  और उस कृषक का गुणगान कर लूँ।

(4) क्षीण निज बलहीन तन को, पत्तियों से पालता जो,
ऊसरों को ख़ून से निज, उर्वरा कर डालता जो,
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ।
उस कृषक का गान कर लूँ।।

अर्थ-> कृषक को अपने जीवन में सारी सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। उसे अपने दुर्बल व क्षीण शरीर को पालने-पोसने के लिए केवल साधारण वस्तुएँ ही प्राप्त होती हैं। वह बंजर धरती को भी अपनी कड़ी मेहनत से उपजाऊ बना देता है। कवि कहते हैं कि सभी देव-दानवों को छोड़ कर आज मैं कृषक का ही ध्यान करूँ 
और उसका गुणगान कर लूँ।   

(5) यंत्रवत जीवित बना है, माँगते अधिकार सारे,
रो पड़ी पीड़ित मनुजता, आज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का निर्माण कर लूँ।
उस कृषक का गान कर लूँ।।

अर्थ ->। हमारा किसान एक जिंदा मानव होते हुए भी मशीन की तरह लगातार काम करता है। दूसरे सब लोग अधिकार मांगते हैं लेकिन कृषक अपना काम ही करता रहता है। उसकी ऐसी दुर्दशा देखकर आज मानवता रो रही है। मै कण-कण जोड़कर कृषक के लिए एक ऐसे घर का निर्माण करुँ, जहाँ उसे एक अच्छे जीवन के लिए सुविधाएँ प्राप्त हों
 और मैं उसका गुणगान कर लूँ। 

स्वाध्याय : पाठ 11 (कृषक गान)
(1) कवि की क्या चाह है ?
क.  कृषक की संतोष की भावना और स्वाभिमान पर मान करना.
ख.  मनुजता के ध्वज के नीचे कृषक का आह्वान करना.

(2) कृषक किन स्थितियों में अविचल रहता है ?
क.  पतझड़
ख.  धूप.

(3) कविता में प्रयुक्त ऋतुओं के नाम :
क.  मधुमास (बसंत)
ख.  पतझड़.

(4) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर पद्य विश्लेषण :
क.  रचनाकार का नाम -> श्री दिनेश भारद्वाज
ख.  कविता की विधा -> गीत (गान)
ग.  पसंदीदा पंक्ति -> हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है।
घ.  पसंदीदा होने का कारण-> अनगिनत अभावों के होते हुए भी कृषक के पास संतोष रुपी धन है।
च.  रचना से प्राप्त संदेश (प्रेरणा )-> कृषक दिन-रात मेहनत करके संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है।        हमें उसके परिश्रम के महत्व को समझना चाहिए। उसका सम्मान करना चाहिए। 
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