Monday, April 27, 2020

दूसरी इकाई - पाठ 8, पेज 80 "अपनी गंध नहीं बेचूँगा" (कवि: बालकवि बैरागी)

हिंदी लोकभारतीदसवीं कक्षा 
दूसरी इकाई - पाठ 8, पेज 80  
"अपनी गंध नहीं बेचूँगा"           (कवि: बालकवि बैरागी)

(पद 1)  
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ चाहे ये उपवन बिक जाएँ
चाहे सौ फागुन बिक जाएँ पर मैं अपनी गंध नहीं बेचूँगा
                                           अपनी गंध नहीं बेचूँगा ।।
अर्थ -> स्वाभिमानी फूल अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है, पर वह किसी भी हालत में अपने स्वाभिमान पर आँच नहीं आने देना चाहता है।
वह कहता है कि चाहे सारे फूल बिक जाएँ, उपवन भी बिक जाएँ, सारी बहारें भी क्यों न बिक जाएँ, पर वह अपनी सुगंध को, जिसे वह अपना स्वाभिमान मानता है, उसे किसी हालत में नहीं बेच सकता।


(पद 2)   
जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई
लछमन जैसी चौकी देकर जिन काँटों ने जान बचाई
इनको पहला हक़ आता है चाहे मुझको नोचें-तोड़ें
चाहे जिस मालिन से मेरी पँखुरियों के रिश्ते जोड़ें
ओ मुझ पर मँडराने वालों मेरा मोल लगाने वालों
जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध नहीं बेचूँगा।
                                 अपनी गंध नहीं बेचूँगा।।

अर्थ -> फूल कहता है कि पौधे की जिस डाली ने उसे अपनी गोद में खिलाया था, जिन कोंपलों ने उसे लालिमा दी थी और जिन काँटों ने लक्ष्मण जी की तरह पहरा देकर उसे तोड़े जाने से बचाया था, उन्हें वह कभी भूल नहीं सकता। उस पर पहला अधिकार इन्हीं का हैं। वे चाहे उसे नोचें या तोड़ें या किसी मालिन को दे दें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। फूल पर नज़रें गड़ाने वालों और उसकी क़ीमत लगाने वालों से वह कहता है कि मैंने अपनी सुगंध को न बेचने की क़सम खाई है, वह उसका संस्कार बन गई है और इसलिए वह अपनी सुगंध नहीं बेचेगा।

(पद 3)   
मौसम से क्या लेना मुझको ये तो आएगा-जाएगा
दाता होगा तो दे देगा खाता होगा तो खाएगा ।
कोमल भँवरों के सुर सरगम पतझारों का रोना-धोना
मुझपर क्या अंतर लाएगा पिचकारी का जादू-टोना
ओ नीलाम लगाने वालों पल-पल दाम बढ़ाने वालो
मैंने जो कर लिया स्वयं से वो अनुबंध नहीं बेचूँगा।
                                     अपनी गंध नहीं बेचूँगा।।

अर्थ -> फूल कहता है कि मौसम कैसा भी हो, मौसम का उस पर कोई असर नहीं पड़ता। वह हर स्थिति में अपने आप को  स्थिर रखने में सक्षम है। वह कभी घबराता नहीं है। चाहे उसकी कोमल-कोमल पंखुड़ियों पर भौंरों के गुंजन का सरगम सुनाई देता हो या पतझड़ का सन्नाटा, उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। फुआरों से सिंचन भी उसे नहीं रिझाता। वह अपनी बोली लगाने वालों व क़ीमत लगाने वालों को संबोधित करते हुए कहता है कि मैंने अपने आप से अपने स्वाभिमान का अनुबंध कर लिया है और ठान लिया है कि मैं अपने स्वाभिमान पर आँच नहीं आने दूँगा। 
और इसलिए वह अपनी सुगंध नहीं बेचेगा 

(पद 4)   
मुझको मेरा अंत पता है पँखुरी 
-पँखुरी झर जाऊँगा
लेकिन पहिले पवन परी संग एक-एक के घर जाऊँगा
भूल-चूक की माफ़ी लेगी सबसे मेरी गंध कुमारी
उस दिन ये मंडी समझेगी किसको कहते हैं खुद्दारी
बिकने से बेहतर मर जाऊँ अपनी माटी में झर जाऊँ
मन ने तन पर लगा दिया जो वो प्रतिबंध नहीं बेचूँगा ।

अर्थ -> फूल कहता है कि जिसका जन्म हुआ है उसका अंत निश्चित है।मुझे पता है कि एक दिन मैं भी पँखुरी-पंखुरी करके झर जाऊँगा और मेरा अंत हो जाएगा। पर इसके पहले मैं हवा के साथ  वातावरण में फैलकर एक-एक के पास जाऊँगा और मेरी सुगंध जाने-अनजाने में किए की माफ़ी माँग लेगी। फूल कहता है कि उस दिन बाजार और ख़रीददार सब को यह बात समझ आ जाएगी कि स्वाभिमान क्या होता है और उसके सम्मान के लिए लोग कितना त्याग करने के तैयार रहते हैं। फूल का कहना है कि किसी के हाथों बिकने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ और अपने देश की मिट्टी में मिल जाऊँ। मैंने अपनी इच्छा से शरीर पर जो प्रतिबंध लगा लिया है, उस प्रतिबंध को मैं कभी नहीं बेचूंगा।

स्वाध्याय (
अपनी गंध नहीं बेचूँगा)

(1) फूल क्या बेचना नहीं चाहता ?
गंध
सौगंध
अनुबंध
प्रतिबंध

(2) फूल का किन किन से  संबंध है->
उपवन
डाली
कोंपल
काँटें.

(3) अंत पता होने पर भी फूल की क्या अभिलाषा है ->
मरने से पहले एक-एक के घर जाना.
भूल-चूक के लिए माफ़ी माँगना.

(4) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर पद्य विश्लेषण ->
रचनाकार का नाम-> श्री बालकवि बैरागी.
रचना की विधा-> गीत.
पसंद की पंक्ति ->
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ, चाहे ये उपवन बिक जाएँ,
चाहे सौ फागुन बिक जाएँ, पर मैं गंध नहीं बेचूँगा।
पंक्तियाँ पसंद होने का कारण-> इन पंक्तियों में फूल हर हालत में अपने स्वाभिमान को सर्वोपरी मानता है। इसके लिए उसे कोई भी त्याग करना पड़े, वह उसके लिए तैयार है। वह अपने स्वाभिमान को किसी भी हालत में बनाए रखना चाहता है।

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